दिल की नज़र से....

दिल की नज़र से....
(चेतावनी- इस ब्लॉग के सर्वाधिकार (कॉपीराइट) ब्लॉग के संचालनकर्ता और लेखक वैभव आनन्द के पास सुरक्षित है।)

सोमवार, 20 सितंबर 2010

फिर भी इक ये टीस है

एक पुराना सा था जो, सम्बन्ध वो भी ख़त्म हुआ,
जैसे दिल के कमरों से गर्द-ओ-गुबार हट गया.

खिड़कियाँ फिर खोल मन की निहारने बैठा हूँ सब,
आज फिर से धूप का टुकड़ा नया सा भर गया.

अटका हुआ था एक खटका, रोकता जुबान था,
आज ढंग  से उसको  सुपुर्द, काग़ज़ों के कर दिया.

अब वहां काग़ज़ दबा हैं  इबारतों के बीच में,
'और मैं, आराम से हूँ', ख़त में मैंने लिख दिया.

अब मैं चाहे जो करूँ आज़ाद हूँ सब बन्धनों से,
फिर भी इक ये टीस है, की, बेहद अकेला हो गया.

तनहईयों की सारी ही  फेहरिस्त अब ग़ुम हो गई,
मजमून लेकिन था कुछ ऐसा की मझमे वो घर कर गया.



गुरुवार, 16 सितंबर 2010

जिस नूर से रोशन था मैं...

मैं ही निशाना हो गया...
इस जहाँ की बंदिशों में, क़ैद हो कर रह गया,
चाहता था गुनगुनाना, सरगमो में खो गया.


है कई नश्तर ज़माने की गिरहबानो में, मगर,

हर किसी का एक मैं ही, क्यों निशाना हो गया.


एक परिंदा दिल था वो भी, उड़ चला गुमनाम सा,
राह के पत्थर से यारी, कर के  उसपे सो गया.


मिन्नत बहुत की उस से लेकिन, वो भी कुछ मजबूर था,
और फिर कुछ यूँ  हुआ, वो कारवां में खो गया.


थी बड़ी ये आरज़ू की मिल सकूं एक बार उस से,
पर जुबान कैसे ये कहती, "जो हो गया-सो हो गया".


अब न कोई राहतें, राह में मेरे बची,
जिस नूर से रोशन था मैं, बेसुध सा वो ही सो गया.


है येही उम्मीद बस की एक दिन वो ये कहेगा,
"मै तेरे जैसे से क्यूँ बेगाना सा हो गया" ?

रविवार, 12 सितंबर 2010

कितनी बार ओमकारा ?

सलमान खान की "दबंग" ओमकारा का नया संस्करण है. गुलज़ार और विशाल भरद्वाज को इन फिल्मो पर केस कर देना चाहिए. दुःख इस बात का भी है की दर्शकों की भूलने की प्रवृत्ति बहुत तेज़ है और इस फिल्म को खूब दर्शक मिल रहे हैं. शायद इसका एक कारण, वो बेहद फूहड़ और अश्लील, जिसे गीत कहना भी गीतों की तौहीन होगी, हाँ! भांडगिरी कह सकते हैं, "मुन्नी बदनाम हुई" है.
हद तो ये है की ओमकारा की हूबहू नक़ल इसका शीर्षक गीत "दम दबंग दबंग" है. जिसकी धुन ओमकारा से मिलती जुलती है. गायक भी सुखविंदर सिंह हैं. कहानी और उसको कहने का अंदाज़ भी ओमकारा की नक़ल मात्र है. दबंग अनुभव कश्यप की है तो इस मामले में अनुराग कश्यप भी पीछे नहीं हैं, उन की फिल्म देव डी मणिरत्नम की युवा की कहानी बताने की तर्ज पे थी. तो गुलाल, ओमकारा और हासिल का मिश्रण. बेहद चालाकी से इनके प्रोमो बनाते हैं ये नकलची बन्दर जैसे निर्देशक, और फिल्म देख के अपना सर फोड़ने का मन करता है. वैसे नक़ल में राजकुमार हिरानी भी पीछे नहीं. उनकी दो फिल्म क्या हिट हुई तीसरी में उन्ही दोनों के तडके को मिक्स कर परोस दिया, क्योंकि वो जानते थे की केवल  3 idiots ही इंडिया में नहीं हैं, बल्कि करोड़ों की फ़ौज है जो रुपये खर्च करके भी बासी कढ़ी खाने को उतावली रहती है. तो अगर दबंग को करोड़ों का बिजनेस मिल रहा है तो कोई आश्चर्य नहीं. हमारे दर्शक ही मूर्ख है. जिन्हें पहले राजनेता बेवकूफ बनाते हैं और फिर फिल्म निर्माता से ले कर साबुन निर्माता तक. 
यानी हर जगह बेवक़ूफ़ जनता और दर्शक ही बनते हैं. वाकई ये हमारे लिए महा-त्रासदी का दौर है.