दिल की नज़र से....

दिल की नज़र से....
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सोमवार, 19 दिसंबर 2011

खुद में उसको 'जिलाए' जी रहा हूँ...!!!

बारिश की बूंदे भी बेहद तल्ख़ लगती हैं,


की जब दामन पे पड़ती है तो एहसां सा करती हैं!



इतने एहसानों का बोझ उठाये फिर रहा हूँ,

उस से इक 'मुस्कराहट' की आस लगाये जी रहा हूँ,

...

मैं जानता हूँ वो कभी 'हँसेगी' नहीं,

फिर भी रोज़ दिल को बहलाए जी रहा हूँ,



ये भरम भी हसीं है, किसी ख्वाब की मानिंद,

ख्वाबों की इक फेहरिस्त बनाये जी रहा हूँ...



वो इस कदर बाबस्ता है रूह से मेरी,

की अब खुद में उसको 'जिलाए' जी रहा हूँ...!!!