दिल की नज़र से....

दिल की नज़र से....
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शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

अधूरे से हैं हम भी...


बड़ी दुश्वारियां हैं, 
एक सीधी राह चलने में,
                                    तुम्हारे आह भरने में, 
                                    हमारे सांस लेने में.
मगर तुम ये नहीं मानोगी,
 की हम  भी प्यार करते हैं,
                                   बड़ी उम्मीद से हर बार, 
                                   ये इकरार करते हैं,
  है अब भी वक़्त, 
  गर तुम समझ पाओ,
                                  अधूरे से हैं हम भी, 
                                 और अधूरे तुम भी हो लेकिन, 
 यही है प्रश्न, इसका हल, 
 हम कहाँ से ले आये?

सोमवार, 8 अक्तूबर 2012

नहीं आया

हमको हवाओं के संग बहाना नहीं आया

हमको कश्ती को चुपचाप खेना नहीं आया,

वो सब आ गया जो गुनाह था, 

उनकी नज़र में,

मगर उनके पैमानों पे कभी तुलना नहीं आया...

इबादतों की इन्तेहाँ...

मेरी इबादतों की इन्तेहाँ तो देखो,
मीलों दूर से उनकी आहठ समझ लेता हूँ...

है ये इश्क नहीं फिर भी चलो यूं ही,
तुम्हारे कहने पे इसे इश्क समझ लेता हूँ...

था जो सुकून तेरी बंदिशों में बाबस्ता,
उसी को सोच के आज भी सो लेता हूँ...


रविवार, 30 सितंबर 2012

कभी महबूब की तरह!

 











पैबस्त है तुझसे मेरी तकदीर इस तरह,
पाने की आस में हो फ़कीर जिस तरह...

बेचारगी देख खुद की, उदास शाम से हूँ,
मजबूर बिन परवाज़ परिंदा हो जिस तरह...

पढने को तेरी आँखें हैं पर कैसे पढ़े हम,
बे-दीद हूँ, सावन का अँधा हो जिस तरह...


तेरा देखना उधर, तेरा देखना इधर,
देखा नहीं मुझे कभी उम्मीद की तरह...

गर समझ पाए तू मेरे चेहरे की इल्तजा,
आये बाँहों में कभी महबूब की तरह...

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

'स्वाति' से बताना मुश्किल है...

रोने के बहाने लाखो हैं,
हसने का बहाना थोड़ा है,
जीने के लिए इस दुनिया में,
जीने का बहाना थोड़ा है...

हर आग उगलती चट्टानों में,
एक झील की चाहत होती है,
हर धूप के दिल में बारिश की,
बूंदों की तमन्ना पलती है...

पर गम के मारे लोगों का,
मुश्किल से ठिकाना थोड़ा है...

हर रात मुझे सिखलाती है,
तन्हाई कैसे कटती है?
हर भोर मुझे समझाती है,
इक दिन सूरज भी चमकेगा...
हर रात भोर तक जीने का
अंदाज़ नया बतलाती है...

बस यादों के अक्स तले,
हर रात निभाना मुश्किल है...

तेरी आमद के संग आयीं,
कुछ ख़ास तमन्ना फिर दिल में,
फिर जश्ने -बहारां दिन आये,
फिर मौसम बदला बदला है,
पर तेरी चुप की इस रात तले,
आस-दीप जलाना मुश्किल है...

तू मेरी है मैं तेरा हूँ,
ये तय है जन्मो-जन्मों से,
बस याद दिलाना है तुझको,
'हम तड़प रहे हैं जन्मों से..'

पर 'चातक' की प्यास बुझे कैसे?
'स्वाति' से बताना मुश्किल है...

रविवार, 8 अप्रैल 2012

 

'घाघ' 

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"कुछ 'घाघ' हैं,
जो बैठे हैं इत्मीनान से,
जो खड़े हैं,
वो 'घाघ' नहीं हैं,
वो डरे सहमे हैं,
और 'घाघों' के सामने,
'दंडवत' हैं...
"ये ऑफिस,
ये शहर,
ये देश,
ऐसे ही चलता है,
ऐसे ही चलेगा...
उखाड़ सको तो
....... उखाड़ लो..."
'घाघों' का
एक और 'फरमान'...."

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

कुत्ते की मौत!!

जवान लड़कियां 
आती हैं 
समाज में,
मर्दों पर,
एहसान के वास्ते,
लड़कियां भी,
ये समझती हैं,
बखूबी की वो,
कुछ अलग हैं,
लार टपकाते,
... कुत्तों के बीच,
दिखाती हैं,
अपनी अदायीं,
उन्हें,
मालूम होता है, कुत्तों की लार,
और,
अपनी सफलता के बीच के,
रिश्तों की कहानी,
का सच,
आदिम कुत्ते,
सौंप देते हैं,
अपनी सत्ता,
लड़कियों के,
हाथो में,
आसानी से,
चुपचाप,
लड़कियां,
ऊपर उठ जाती हैं,
और इतरा के,
कहती हैं,
'ये मेरी उपलब्धि है'...
कुत्ते,
लार टपकाते-टपकाते, एक दिन,
मर जाते हैं,
निहायत ही 'कुत्ते की मौत'.....