दिल की नज़र से....

दिल की नज़र से....
(चेतावनी- इस ब्लॉग के सर्वाधिकार (कॉपीराइट) ब्लॉग के संचालनकर्ता और लेखक वैभव आनन्द के पास सुरक्षित है।)

बुधवार, 3 दिसंबर 2014

यही है रे जीवन...

ये वक़्त है 
एक घोड़ा-गाड़ी 
भागता है - रुकता है 
धीमा हो जाता है 
घोड़े के गले में बंधे घुँघरू 
तब भी खनकते हैं 
जब गाड़ी बिलकुल रुकी होती है 
वक़्त चले-रुके या बदले 
जीवन संगीत नहीं रुकता 
घोड़े के गले के घुँघरू 
यही कहते हैं 
छन-छन, बीतेगा हर छण यूँ ही 
मत सोच क़ाफ़िला निकल गया 
बस अपनी रफ़्तार बढ़ा 
हौले से फिर हाँक जीवन की गाड़ी 
सुनता जा घुँघरू की छन-छन... 
यही है रे जीवन।  

गुरुवार, 20 नवंबर 2014

मौत का था तमाशा...




पत्थरों पे लिखे गए, जो गीत,           सब अमर हुए, 
काग़ज़ी थी प्रीत अपनी,   तो अश्कों में हर्फ़ बह गए।  


मौत का था वो तमाशा,   महज बन सके तमाशबीन, 
परदा गिरा तो होश आया,  किसको हम दफना गए। 

वो गया, तो ले गया,           बहार-ए-चमन साथ में, 
हम बेबसी से बस,      इलज़ाम-ए-क़िस्मत धर गए।

वो जिसे कल ही तो लाये थे घर,      बड़े अरमान से, 
आज तस्वीरों में हम बस,      उसको समेटे रह गए।  

कारवां कुछ यूं लुटा ,     ख्वाबों सी मखमल राह पर,
अब किस क़दम पे मौत है,    हम सोचते ही रह गए।   

मंगलवार, 24 जून 2014

उस दिन से आज तक

उस दिन यूँ ही, 
उसने तुम्हारा नाम, 
मेरी हथेली पे लिख दिया, 
दुनिया से छुपाने के वास्ते, 
मैंने बहुत देर तक, 
अपनी मुठ्ठी नहीं खोली, 
पता नहीं कब...? 
तुम पसीने में घुल गई,बह गयी, 
मेरी हथेली की बंदिशों से..
आज भी जब हथेली को.. 
मैं छूता हूँ, 
एक खलिश दिल में 
कहीं बहुत गहरे होती है... 
तुम्हारा चमकता सा.. 
धूप में लाल हुआ चेहरा 
बहुत देर तक 
मेरे 'काले-सफ़ेद' ख्यालों में 
'लाल रंग' भरता है,
तुम्हारी कशिश 
जो आज तक 
ताज़ा है ज़ेहन में... 
सुना है लोगों से 
बरसों बाद आज भी 
वो चमक 
जस की तस है? 
शायद इसलिए, 
की 
तुम अनजान हो 
मेरी हालत से... 
मगर 
मेरे जीने का 
तो बस 
इक यही सहारा है 
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(C) - वैभव आनंद