दिल की नज़र से....

दिल की नज़र से....
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शनिवार, 30 जुलाई 2016

इक पल न लगा....

मुद्दतें लगीं तेरी         नज़र-ए-इनायत पाने में
तुझे इक पल ना लगा मुझे नज़रों से गिराने में


सवाल था       उम्र भर साथ निभाने का
तू तो बिखर गया एक रिश्ता निभाने में


तेरी आदत कुछ इस क़दर मुझपे तारी थी...
अब तलक उलझा हूं, तलाक लफ्ज़ के मायने में

गुरुवार, 28 जुलाई 2016

...क्योंकि हम 'मौन' हैं....


वो मुखर हैं, अपने हथियारों के साथ
क्योंकि हम 'मौन' हैं...
वो आमादा हैं हमें मारने पर....
क्योंकि हम 'कौन' हैं...
वो कुछ भी कर सकते हैं...
क्योंकि उनके लिए 
सब कुछ 'कौम' है
ये युद्ध है - 
'पांडवों' और 'कौरवों' के बीच
हम ये तो जानते हैं कि 
हम 'पांडव' हैं....
मगर इस समर में
'कृष्ण' कौन है.....
उनके पास भीष्म हैं
'मज़हब' के सिंहासन से बंधे हुए...
मगर अपने पाले में
'शिखंडी' कौन है...
हमें या तो 'कृष्ण' चाहिए
या 'शिखंडी'
इस पर सोचने का वक्त है....
मगर हम 'मौन' हैं
ये 'मौन' बहुत भारी पड़ेगा
छोड़ो सारी बातें
आ जाओ मैदान में
बना लो दो पाले
जहां एक तरफ 
'कौम' है
और दूसरी तरफ 
'कौन' हैं
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