क्यों कोसते हो शहर की बदनाम गलियों को, यहां हर मोड़ पर एक "बदनाम बस्ती" है...
दिल की नज़र से....
(चेतावनी- इस ब्लॉग के सर्वाधिकार (कॉपीराइट) ब्लॉग के संचालनकर्ता और लेखक वैभव आनन्द के पास सुरक्षित है।)
बुधवार, 10 अगस्त 2016
चार कंधो पे जाती है....
हमे तपता हुआ पाकर, आग फिर भी तपाती है... किसी एक की जलन खातिर, वो सब पे नश्तर चलती है.. वो ही है "ब्रम्ह" एक, गुमान उसको, चिढ़ाती है, हिकारत से सभी को देखती और थूक जाती है...मगर सच्चे लोगो के बीच उसकी जहालत खुलती जाती है, तेरा क्या वास्ता दुनिया के लोगो से... मगर ये याद रख एक लाश भी चार कंधो पे जाती है....
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