दिल की नज़र से....

दिल की नज़र से....
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रविवार, 24 अक्तूबर 2010

किस्मत के हर्फ

भीगी आँखें अश्को से       अब कहाँ होती है,
वो मेरी किस्मत के हर्फों से    बयां होती है...

वो मेरा था जिसे तुमने        उसको दे दिया,
हर बार येही एक शिकायत खुदा से होती है..

अभी और भी है राहें           तू चुन तो सही,
हर हार के बाद बस ये ही दिलासा होती है...

हैं पेंचो ख़म बहुत इस       आँख मिचौली में,
अब तो ये एक आदत            जैसी होती है...

तमाम उम्र एक फिकरे से परेशान रहे, अब,
उसी फिकरे में ढली अपनी जुबान होती है...

कमीन लोग यहाँ       मीठे खंजर रखते हैं,पर
उन्ही से दोस्ती, आजकल मिलकियत होती है...

वो आंसुओं में भीगी     चिठ्ठी मुझे लिखता है,
मगर वो हमेशा        मुझ तक नहीं पहुँचती है...

सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

ढाबा

रोज़ 'चित्रों' को,


हम परोसते हैं,

'शब्द' और 'आवाज़' से,

उन्हें छौकते हैं,

छन से आवाज़,

छौंक की होती है,

"क्या यार...ज़रा धीरे से"

बड़े हलवाई चीखते हैं...

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

बदनाम बस्ती: ये प्यासा बड़ा पुराना है...

बदनाम बस्ती: ये प्यासा बड़ा पुराना है...

ये प्यासा बड़ा पुराना है...

हर दिन की वही कहानी थी,
पर रातों का नया फ़साना है,
आँखों से रात को  छलकेगा,
जो अश्क अभी अंजाना है ...
मुझे रात ही अपनी लगती है,
तारों का लश्कर भाता है,
उसे रात ही मुझमे घुलना है,
दिन में बस नज़र चुराना है..
जिसे मैंने बड़ा संभाला है,
वो जज्बातों का दरिया है,
लहरों  से हूक निकलती है,
पर वो इस से बेगाना है...
वो पास से गुज़रे,आस जगा दे,
न दिक्खे उम्मीद भुला दे,
नीम नशा कैसा है ये,
इसे कैसे दिल से हटाना है?
एक बार वही दिल धड़का है,
जिसे मैंने कभी भुलाया था,,
फिर धड़कन नयी नयी सी है,
फिर दिल का वही बहाना है..
इस बार इसे जी लेने दो,
इस बार इसे पी लेने दो,
मत छीनो इससे,इसके प्याले,
ये प्यासा बड़ा पुराना है...