डस रहा था बनके काला नाग भ्रष्टाचार जब,
और कुदरत कर रही थी जम के हाहाकार जब,
ले रही थी निज उमंगें इक नया आकार तब,
कुछ बदलने, और कुछ, बेहतरी की आस में,
मैंने देखा स्वप्न इक, खोल आँखें जाग तब!!
स्वप्न था वो, या हकीकत थी, मेरे एहसास की,
कुछ न कर पाने की वो, अनकहे उन्माद की,
तब बड़े ही ध्यान से मैंने उन्हें देखा पलट कर,
वो थी इक पुस्तक पुरानी मेरे ही इतिहास की!!
इतिहास खोला, तो ये जाना, क्या बिताई ज़िन्दगी?
मौत से बदतर, नरक के ताप सी थी ज़िन्दगी,
अब बदलना ही पड़ेगा इस बुरे इतिहास को,
और बनानी ही पड़ेगी उदहारणों सी ज़िन्दगी!!
और कितना वो छलेंगे अपने छद्म रसूख से,
हम लड़ेंगे कब तलक चिर पुरानी भूख से,
अब नए युग गान खातिर रचना है एक गीत फिर,
आओ मांगें छाह थोड़ी, इस 'कमीनी' धूप से!!
रोज़ दो-दो हाथ करते मौत से रोटी की खातिर,
लूट लेते आधी रोटी 'सत्ता के दलाल' शातिर,
सत्ता नहीं सौंपेंगे इन शातिरों के 'हाथ' अब,
मेरे-तुम्हारे आज, सबके मुस्तकबिल की खातिर!!
आओ ज़रा ये प्रण करें हाथों में हाथ थाम कर,
फूंक हम सबका ये घर, न कर सकें अट्टहास अब!!
कुछ बदलने, और कुछ, बेहतरी की आस में,
मैंने देखा स्वप्न इक, खोल आँखें जाग तब!!
और कुदरत कर रही थी जम के हाहाकार जब,
ले रही थी निज उमंगें इक नया आकार तब,
कुछ बदलने, और कुछ, बेहतरी की आस में,
मैंने देखा स्वप्न इक, खोल आँखें जाग तब!!
स्वप्न था वो, या हकीकत थी, मेरे एहसास की,
कुछ न कर पाने की वो, अनकहे उन्माद की,
तब बड़े ही ध्यान से मैंने उन्हें देखा पलट कर,
वो थी इक पुस्तक पुरानी मेरे ही इतिहास की!!
इतिहास खोला, तो ये जाना, क्या बिताई ज़िन्दगी?
मौत से बदतर, नरक के ताप सी थी ज़िन्दगी,
अब बदलना ही पड़ेगा इस बुरे इतिहास को,
और बनानी ही पड़ेगी उदहारणों सी ज़िन्दगी!!
और कितना वो छलेंगे अपने छद्म रसूख से,
हम लड़ेंगे कब तलक चिर पुरानी भूख से,
अब नए युग गान खातिर रचना है एक गीत फिर,
आओ मांगें छाह थोड़ी, इस 'कमीनी' धूप से!!
रोज़ दो-दो हाथ करते मौत से रोटी की खातिर,
लूट लेते आधी रोटी 'सत्ता के दलाल' शातिर,
सत्ता नहीं सौंपेंगे इन शातिरों के 'हाथ' अब,
मेरे-तुम्हारे आज, सबके मुस्तकबिल की खातिर!!
आओ ज़रा ये प्रण करें हाथों में हाथ थाम कर,
फूंक हम सबका ये घर, न कर सकें अट्टहास अब!!
कुछ बदलने, और कुछ, बेहतरी की आस में,
मैंने देखा स्वप्न इक, खोल आँखें जाग तब!!