दिल की नज़र से....

दिल की नज़र से....
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मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

ग्यारह महीने...

अपने घर में इक कील भी लगाओ तो,

वो अपनी सी लगती है,

ऐसा मेरी माँ कहती थी,

अक्सर मेरे पिताजी से..

सरकारी नौकरी में,

इमानदारी की मिसाल बन,

अपने घर का सपना पालना?

पिताजी उस पहाड़ की ऊँचाई से वाकिफ थे,

पर माँ तो माँ है,

उसके लिए चौतरफा दबाव है,

...कुछ बेच के,

इमानदारी को निचोड़ के,

पुरखों के सपने ख़ाक कर,

एक सरकारी योजनाओं का,

घर ले ही लिया,

मगर जब रहने की बारी आई

तो तबादला और बिमारी लायी,

फिर उस "अपने" घर में ताला लगा,

कुछ बर्तन और कुछ बिस्तर ले,

एक नए शहर में...

सब कुछ "अपने" घर में,

ताले में बंद था,

यहाँ, हर महीने मकान-मालिक.

का "पठान" की तरह आना.

माँ का आश्वासन की कल आना

हर ग्यारह महीने पर,

मकान बदलने की,,

प्रसव-वेदना सा झेलना...

एक तनख्वाह,

ज़मीन पे सोना,

पिताजी और माँ का कहना,

क्या करना है यहाँ कुछ सामान खरीद कर,

कोशिश करिए,

वापस अपने शहर तबादला ले लीजिये,

बाट जोहते तबादले की,

साल दर साल निकलते गए,

माता और पिताजी,

बुढ़ापे की और बढ़ते गए,

मगर अपने घर की आस में,

हम किसी और घर में,

अपने अपने कोने की हिफाज़त करते रहे,

यही सोच, किराए के घर को

नए शहर को,

और उस नए शहर के लोगों को

ये सोच न अपना सके की,

"ये अपना नहीं है",

एक दिन हम "अपने" घर में जायेंगे,

आखिर किराये के मकान में ही,

पिताजी रिटायर हो गए,

दिल में अनेको दर्द लिए,

दिल के ओपरेशन की डगर चल दिए,

फिर 'अपने" घर जाने के इंतज़ार में,

कई साल कौवो को सुन सुन के बिताये,

बात बेटियों की शादी की आई,

"अपने" बेगाने हुए,

तो फिर "अपने" घर की याद आई.

इस बार, उसका दाम लगा,

बिक गया,

बेटी की शादी हुई,

लेकिन माँ का सपना,

अधूरा रहा ,

कुछ साल, और भटक के,

हर ग्यारह महीने में

जड़ से कट कट के...

पिताजी इस दुनिया से उठ गए,

किराए के माकन से ही उनका

जनाज़ा निकला,

माँ आज भी रोती हैं,

मगर किराए के घर की दीवारों के सिवा,

उनके आंसुओं का कोई और,

गवाह नहीं है....

बेटा अभी भी ग्यारह महीने के खौफ्फ़,

में ही जीता है,

माँ, अपने भगवान् की मूर्तियों,

के लिए हर नए किराये के मकान में,

जगह ढूंढ लेती है...

ग्यारह, दस, नौ, आठ….

वो उलटी गिनती,

जो माँ की चिंता का सबब है,

और जो बेटे के माथे की

बढती चौड़ाई से भी,

डरती नहीं है,

वो तो बस घटती जा रही है,

ग्यारह, दस, नौ, आठ…..

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