'घाघ'
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"कुछ 'घाघ' हैं,
जो बैठे हैं इत्मीनान से,
जो खड़े हैं,
वो 'घाघ' नहीं हैं,
वो डरे सहमे हैं,
और 'घाघों' के सामने,
'दंडवत' हैं...
"ये ऑफिस,
ये शहर,
ये देश,
ऐसे ही चलता है,
ऐसे ही चलेगा...
उखाड़ सको तो
....... उखाड़ लो..."
'घाघों' का
एक और 'फरमान'...."