मेरी इबादतों की इन्तेहाँ तो देखो,
मीलों दूर से उनकी आहट समझ लेता हूँ...
मीलों दूर से उनकी आहट समझ लेता हूँ...
है ये इश्क नहीं फिर भी चलो यूं ही,
तुम्हारे कहने पे इसे इश्क समझ लेता हूँ...
था जो सुकून तेरी बंदिशों में बाबस्ता,
उसी को सोच के आज भी सो लेता हूँ...