बदनाम बस्ती...!
क्यों कोसते हो शहर की बदनाम गलियों को, यहां हर मोड़ पर एक "बदनाम बस्ती" है...
दिल की नज़र से....
(चेतावनी- इस ब्लॉग के सर्वाधिकार (कॉपीराइट) ब्लॉग के संचालनकर्ता और लेखक वैभव आनन्द के पास सुरक्षित है।)
सोमवार, 11 अक्तूबर 2010
ढाबा
रोज़ 'चित्रों' को,
हम परोसते हैं,
'शब्द' और 'आवाज़' से,
उन्हें छौकते हैं,
छन से आवाज़,
छौंक की होती है,
"क्या यार...ज़रा धीरे से"
बड़े हलवाई चीखते हैं...
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