आप रहते हैं झोपड़े में
तो एक बात
क्यों नहीं आती
आपके 'खोपड़े' में।
महलों के
सपने देखना बंद क्यों नहीं करते।
आज भी सामंत हैं
जो आपको
अपनी 'रियाया' समझते हैं
और आप हैं कि खुद को
'राजा' समझते हैं...
बंद करो ये दिवास्वप्न
मध्यमवर्गीय लोगों।
तुम प्राचीन काल सेअब तक
महज एक 'यंत्र' हो...
जिसे कोई और चलाता है।
राज उसका है,
समाज उसका है
तुम तो
वो दंतविहीन सांप हो जो
आधुनिक सामंतों की
बीन पर नाचता भर है...
और गुमान
ये पालता है
कि उसकी 'फुफकार' भर से
सामंत डर जाएंगे
अरे, छोड़ो...
रोज जियो, रोज मरो..