चार कंधो पे जाती है....
हमे तपता हुआ पाकर, आग फिर भी तपाती है...किसी एक की जलन खातिर,
वो सब पे नश्तर चलती है..
वो ही है "ब्रम्ह" एक,
गुमान उसको, चिढ़ाती है,
हिकारत से
सभी को देखती
और थूक जाती है...मगर
सच्चे लोगो के बीच उसकी
जहालत खुलती जाती है,
तेरा क्या वास्ता
दुनिया के लोगो से...
मगर ये याद रख
एक लाश भी
चार कंधो पे जाती है....
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