हमारी आवाज़ में न हक की लड़ाई थी ,
न निगाहों में कोई अदावत की थी परछाई,
मगर फिर भी हजारो टुकड़े किये इस दिल के , दुनिया ने ,
और ऐसे बिखरा उनको ,
की लाख कोशिशों के बाद भी ,
तस्वीर पुराने से दिल की मुकम्मल नहीं होती,
शायद ! वो एक टुकड़ा ,
आज तक , कहीं गुमशुदा सा ही है ...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें