दिल की नज़र से....

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गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

दिल्ली और आस-पास

ऐ मेरे आका, कुछ जुगत ऐसी  भिड़ा,
इतवार को ही सारी भेड़े न चारा....

उनको लगाव  है, गालियों से इस कदर,
पूछते हैं हमसे, दिल्ली में नए हो क्या?...

दिल्ली के आस-पास, कंक्रीट के जंगल, हैं भेड़िये उनमे,
पहन कोट ठाठ से , भेड़ों की खाल का...

निकल गए वो जब सड़कों पे एक साथ,
एहसान का धुआं छोड़, खुंखारते "हुआ-हुआ " सा...

पांच दिन के काम की, थकान उतारने को,
माल में लड़े, हड्डी  पे कुत्तों सा... 

इन भेड़ियों से बच के, चलना ही होगा,
है इनको बड़ा गुमान, दिल्ली में बसने का...

सैकड़ों मील दूर, है बीवियां इनकी,
यहाँ पे है तमगा, निपट कुवारेपन का...

हैं औरते यहाँ, कुछ अलग, खूबसूरत,
देखें वो इनको, धंधेवालियों सा...

यहाँ पर सभी को बेवक़ूफ़ बना के,
लौटेंगे छुट्टियों में घर, रण-बांकुरों सा...



  

  

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