दिल की नज़र से....

दिल की नज़र से....
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मंगलवार, 30 अगस्त 2016

हवा के रुख का मारा वो...

किनारों से टकरा के              समंदर टूट जाता है,
मगर पत्थर पे सर देने से  कब वो बाज आता है।

माना हर कहानी                सच नहीं होती,मगर, 
हर नया किरदार            ज़ेहन में घर बसाता है।


जुदाई क्या है                       ये उनसे ज़रा पूछो,
जिनका कोई अज़ीज़       सफ़र में छूट जाता है।


मुक़ाबिल आईने के                   मैं ही हूं हरदम,
तभी हर बार मुझसे            वो मुंह की खाता है।


उसे हामी मिलेगी                या नकारा जाएगा?
हवा के रुख का मारा वो   ना अब शर्तें लगाता है।