शनिवार, 9 अक्तूबर 2010
ये प्यासा बड़ा पुराना है...
हर दिन की वही कहानी थी,
पर रातों का नया फ़साना है,
आँखों से रात को छलकेगा,
जो अश्क अभी अंजाना है ...
मुझे रात ही अपनी लगती है,
तारों का लश्कर भाता है,
उसे रात ही मुझमे घुलना है,
दिन में बस नज़र चुराना है..
जिसे मैंने बड़ा संभाला है,
वो जज्बातों का दरिया है,
लहरों से हूक निकलती है,
लहरों से हूक निकलती है,
पर वो इस से बेगाना है...
वो पास से गुज़रे,आस जगा दे,
न दिक्खे उम्मीद भुला दे,
नीम नशा कैसा है ये,
इसे कैसे दिल से हटाना है?
एक बार वही दिल धड़का है,
एक बार वही दिल धड़का है,
जिसे मैंने कभी भुलाया था,,
फिर धड़कन नयी नयी सी है,
फिर दिल का वही बहाना है..
इस बार इसे जी लेने दो,
इस बार इसे जी लेने दो,
इस बार इसे पी लेने दो,
मत छीनो इससे,इसके प्याले,
ये प्यासा बड़ा पुराना है...
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