दिल की नज़र से....

दिल की नज़र से....
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रविवार, 14 फ़रवरी 2010

हवाएं तय करेंगी...

मस्तूल* पे न बस कोई, माझी करे दुआएं,
हवाएं तय करेंगी,अब, कश्तियों की दिशायें...

मुहब्बत सरहदों सी, इंसानियत वतन है,
एक दुसरे में कैसे हो मेल अब बताएं.......

हमसे बड़ी हुई हैं, आपकी परछाईं,
अब अपने आप को हम, किस नाम से बुलाएँ.....

"भयानक है दौर लेकिन गुजरेगा एक दिन ये ",
आपकी  तसल्ली में, कैसे दिन बिताएं....

है घर में अपने लटके, उल्लू बेबसी के,
तो कैसे हम आपको, मेहमान सा बुलाएँ....

जब तक रहे वो गैर तो पोशीदा रहे हर राज़,
अब बन गए हमराज़, तो कैसे कुछ छुपायें?...

बुज़ुर्ग से हैं हाथ, और मजबूरियां जवान,
बस एक ही "बिजूका"** कब तक फसल बचाए.....


*मस्तूल = वो लम्बा सा बांस का डंडा, जिस से नाविक नाव को धकेल के दिशाए देता है....
**बिजूका = खेतों में पंछियों को धोखे में रखने के लिए लगाया जाने वाला आदमकद पुतला

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