प्रिय मित्रों से विनम्र निवेदन
प्रिय मित्र,
इस कविता को पढने के बाद, मैं आग्रह करूँगा की आप नीचे कविता के अंत में लिखे दो पौराणिक दृष्टांत को ज़रूर पढ़े, इस से इस कविता के भाव को समझने में आसानी होगी.... आपके सुझाव और आलोचनाओ का का हमेशा की तरह इंतज़ार रहेगा -
आपका शुभेक्छु
वैभव अ. श्रीवास्तव
__________________________________________
यमराज ढूढ़ते रहते हैं....
हम न घर के वासी हैं
न मठ के सन्यासी हैं,
हम मृत्युलोक के नचिकेता* हैं,
अपनों से दुत्कार मिली,
यमराज ढूढ़ते रहते हैं.....
जीवन अपना शमशान हुआ है,
स्वाभिमान की चिता सजी,
वर्तमान से लड़ने की,
हमको ऐसी सजा मिली,
हम दधिची** बन के भी हारे,
त्याग किया, फटकार मिली,
यमराज ढूढ़ते रहते हैं.....
हम संस्कार के, मृदु जालों में,
तार-तार हो, बैठ गए,
अभाव आचमन का होने से,
भाग्य-विधाता रूठ गए,
पिए गरल* हमने भी बहुत,
पर नीलकंठ पदवी न मिली,
यमराज ढूढ़ते रहते हैं..... [*गरल - विष या ज़हर ]
झूठ-कपट सिरमौर बना है,
सत्य सिसकियाँ लेता है,
अर्थ, अनर्थ मचा जाता,
जब पेट हिचकियाँ लेता है,
हरिश्चंद्र आदर्श बना के,
भूख मिली, रोटी न मिली,
यमराज ढूढ़ते रहते हैं.....
(पौराणिक कहानी )
[1]*नचिकेता - बालक नचिकेता ने जब देखा की उसके पिता बूढी गायों को कसाई को दान दे रहे हैं, तो उसने पिता से पुछा की आप ऐसा क्यों कर रहे है, तो उत्तर मिला की अब ये सब किसी काम की नहीं रह गयी हैं, इसलिए इनको पाल कर इन पर खर्च करना बेकार है, नचिकेता दुखी हुआ और पूछने लगा की पिताजी, अगर कल को मैं किसी काम लायक नहीं बचा तो आप मुझे किसको दान करेंगे, और ये प्रश्न वो उनसे बार बार करता रहा, गुस्से में पिता ने कह दिया "तुझे यमराज को दान कर दूंगा", ये सुन कर बालक घर से निकल कर जंगल में भटकता रहा और यमराज को ढूढता रहा.... यमराज ने उसे दर्शन दिए और उसकी जिज्ञासाओं को शांत किया...
[2]**दधिची - ऋषि दधिची ने अपने पुरखो को तारने के लिए अपने शरीर की हड्डियों तक को दान कर दिया था...
रविवार, 14 फ़रवरी 2010
हवाएं तय करेंगी...
मस्तूल* पे न बस कोई, माझी करे दुआएं,
हवाएं तय करेंगी,अब, कश्तियों की दिशायें...
मुहब्बत सरहदों सी, इंसानियत वतन है,
एक दुसरे में कैसे हो मेल अब बताएं.......
हमसे बड़ी हुई हैं, आपकी परछाईं,
अब अपने आप को हम, किस नाम से बुलाएँ.....
"भयानक है दौर लेकिन गुजरेगा एक दिन ये ",
आपकी तसल्ली में, कैसे दिन बिताएं....
है घर में अपने लटके, उल्लू बेबसी के,
तो कैसे हम आपको, मेहमान सा बुलाएँ....
जब तक रहे वो गैर तो पोशीदा रहे हर राज़,
अब बन गए हमराज़, तो कैसे कुछ छुपायें?...
बुज़ुर्ग से हैं हाथ, और मजबूरियां जवान,
बस एक ही "बिजूका"** कब तक फसल बचाए.....
*मस्तूल = वो लम्बा सा बांस का डंडा, जिस से नाविक नाव को धकेल के दिशाए देता है....
**बिजूका = खेतों में पंछियों को धोखे में रखने के लिए लगाया जाने वाला आदमकद पुतला
हवाएं तय करेंगी,अब, कश्तियों की दिशायें...
मुहब्बत सरहदों सी, इंसानियत वतन है,
एक दुसरे में कैसे हो मेल अब बताएं.......
हमसे बड़ी हुई हैं, आपकी परछाईं,
अब अपने आप को हम, किस नाम से बुलाएँ.....
"भयानक है दौर लेकिन गुजरेगा एक दिन ये ",
आपकी तसल्ली में, कैसे दिन बिताएं....
है घर में अपने लटके, उल्लू बेबसी के,
तो कैसे हम आपको, मेहमान सा बुलाएँ....
जब तक रहे वो गैर तो पोशीदा रहे हर राज़,
अब बन गए हमराज़, तो कैसे कुछ छुपायें?...
बुज़ुर्ग से हैं हाथ, और मजबूरियां जवान,
बस एक ही "बिजूका"** कब तक फसल बचाए.....
*मस्तूल = वो लम्बा सा बांस का डंडा, जिस से नाविक नाव को धकेल के दिशाए देता है....
**बिजूका = खेतों में पंछियों को धोखे में रखने के लिए लगाया जाने वाला आदमकद पुतला
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