मैंने नहीं,
तुमने किया था,
सवाल।
जिसका
जवाब खोजते-खोजते
मिले मुझे
अनगिनत सवाल।
सवालों का ढेर
मेरे सामने पड़ा है।
उस वक्त
तुम्हारे
उस ‘एकमात्र’ सवाल का
जवाब नहीं था
मेरे पास।
आज
सवालों के इस ढेर में
किसी का भी
जवाब नहीं मेरे पास।
वैसे तुम्हारा भी
‘जवाब’ नहीं...
मुझे सवालों में
उलझा के तुम
अपनी राह चल दिए।
आज तुम
‘नए जवाबों’ के संग
मस्त हो,
और मैं
सवालों के बोझ तले
पशोपेश में हूं।
पशोपेश में हूं।
तुम्हारा ‘पीछा’ छुड़ाने का
ये ‘नायाब’ तरीका
मुझे पसंद आया
मगर मैंने,किसी पर इसे
नहीं आज़माया।
किसी को भ्रम में डालना
उसकी ‘मानसिक-हत्या’
करने जैसा है।
तुम हत्यारे हो...
मगर दिल के
किसी कोने में
अब भी हमारे हो...।
जिस दिन वो कोना
ओझल हो जाएगा
उम्र के दिए ‘मोतियाबिंद’ से
तब, मैं तुमसे
जवाब मागूंगा....।
तुम्हारा पुराना सवाल
तुम्हें याद दिलाऊंगा।
जवाबों के साथ-साथ
अपने गुजारे
सभी तन्हा लम्हों का
हिसाब मागूंगा...
तैयार रहना....
मैं जल्द आऊंगा...
इसी जीवन में।
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