क्यों कोसते हो शहर की बदनाम गलियों को, यहां हर मोड़ पर एक "बदनाम बस्ती" है...
दिल की नज़र से....
(चेतावनी- इस ब्लॉग के सर्वाधिकार (कॉपीराइट) ब्लॉग के संचालनकर्ता और लेखक वैभव आनन्द के पास सुरक्षित है।)
बुधवार, 3 फ़रवरी 2010
इब्तदा-ऐ-इबादत
कभी हासिल , कभी खोयी ,
यही है इब्तदा-ऐ-इबादत ,
कभी बिस्तर पे सिलवट सी ,
कभी तस्वीर से अदावत ,
यही ज़िन्दगी का सच है ,
न इसमें हो रुकावट ,
हासिल , जो फासले है ,
यही उनकी है लिखावट ,
वैसे तो कब्र में ही ,
मिटती है हर थकावट .....
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