(पहली बात) "मुहब्बत की इबादत ही ,
हमारी आदत ही सही ...
उनकी वहशत भी सही ,
हमारी नजाकत भी सही ,
गर हमारी इबादत ,
जो क़ुबूल हो गयी ,
उनका तर्रुफ्फ़ भी नहीं ,
हमारी हर बात सही ...."
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(दूसरी बात)
है तार्रुफ्फ़ यही की वो अब किस्सों की बात करता है...
जो जी नहीं पाया उन हिस्सों की बात करता है....
ये फितरत-ऐ-इंसान ही है, और कुछ नहीं....
जो कर नहीं पाया, वो सिर्फ बात करता है.....
1 टिप्पणी:
आपकी गुफ्तगू का क्या कहना ,
सिर्फ दो बातों में इजहारे-मतलब ..
बहुत खूब मित्र ..,आपका तहेदिल से स्वागत करता हूँ ..
संगीत में रूचि है,इस विडियो में आपके लिए कुछ है..,सुन कर बताइएगा कैसा लगा ..mk
http://www.youtube.com/watch?v=rpYFab53aqM
one of my best youtube upload
http://www.youtube.com/mastkalandr
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