भीगी आँखें अश्को से अब कहाँ होती है,
वो मेरी किस्मत के हर्फों से बयां होती है...
वो मेरा था जिसे तुमने उसको दे दिया,
हर बार येही एक शिकायत खुदा से होती है..
अभी और भी है राहें तू चुन तो सही,
हर हार के बाद बस ये ही दिलासा होती है...
हैं पेंचो ख़म बहुत इस आँख मिचौली में,
अब तो ये एक आदत जैसी होती है...
तमाम उम्र एक फिकरे से परेशान रहे, अब,
उसी फिकरे में ढली अपनी जुबान होती है...
कमीन लोग यहाँ मीठे खंजर रखते हैं,पर
उन्ही से दोस्ती, आजकल मिलकियत होती है...
वो आंसुओं में भीगी चिठ्ठी मुझे लिखता है,
मगर वो हमेशा मुझ तक नहीं पहुँचती है...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें