दिल की नज़र से....

दिल की नज़र से....
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शनिवार, 17 अक्तूबर 2009

क्या कहना....

क्या कहना है, उफ़! मुस्कानों का, जो खुल के जज़्बात दिखाती हैं... पर अक्सर ये दर्द के , माने बन होठ पे आती है... क्या राज़ छुपा मुस्कानों में , ये बतला दो मुझको भी, थोडा भी दिल के पास हूँ तो , अपना लो झट से मुझको भी ....

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