नजाकत से नफासत तक, हर इक बात बेमानी,
हटा लो उसको, जिसकी, मर चुका है आँख का पानी...
अदा उसकी कोई भी, दिल को छु कर नहीं गुजरी,
की सब जानते हैं, उसकी दिखावे की है कुर्बानी...
वो जो करते हैं, बेहद ढंग से, सजदे नमाज़ों में,
उनके सर कई है जुल्म गुमनामी...
है उनके हाथ में ताक़त मगर आका है वो अपना,
बचे फसलें भला कैसे, है चूहों की निगेहबानी...
उनका ही कमाल है , बताऊँ कैसे ये तुमको,
बनाते कायदे वो ही, है उनका लफ्ज़ फ़रमानी...
बन्दर-बाट में माहिर, है तबियत के धनी बेहद,
झुकें गर्दन जो सजदे में, बख्शें उसको ही हमनामी...
2 टिप्पणियां:
वो जो करते हैं, बेहद ढंग से, सजदे नमाज़ों में,
उनके सर कई है जुल्म गुमनामी...
---------------
वैभव पहली बार तुम्हारे ब्लॉग पर गया हूं.. खुदा की कसम में तुम्हारी कलम में बहुत जज़्बा है.. और ऊपर जो लाइन तुमने लिखीं हैं, वो तो समाज को आईना दिखाने के लिए काफी है.. बहुत उम्दा ब्लॉग है..
shukriya abyaz bhai, aate rahiye mere blog par...
एक टिप्पणी भेजें