शनिवार, 17 अक्तूबर 2009
गुमसुम सी ज़िन्दगी....
गुमसुम सी ज़िन्दगी, है तल्ख़ ये ज़माना,
उलझा हुआ सा अपनी तकदीर का फ़साना...{1}
हर कोई चल रहा है, हर कोई है मुसाफिर,
किस से करूँ गुजारिश, अब छोड़ के न जाना....{२}
अब तंग है नज़रिया, ना-पाक हैं इरादे,
मुमकिन नहीं चमन में, अपनी जगह बनाना...{३}
नाराज़ हो के उनसे , "वैभव" कहाँ पे जाये,
मुश्किल है आइनों से अपनी नज़र चुराना ....{4}
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2 टिप्पणियां:
maan gai ustaad
maan gai ustaad...........
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