दिल की नज़र से....

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मंगलवार, 17 अगस्त 2010

आमिर का कूड़ा, अनुषा की गालियाँ

पिप्पली लाइव की  चर्चा हर कहीं हैं... मगर मुझे उस नौजवान दर्शक की टिपण्णी याद आ रही है जो फिल्म ख़तम होने के बाद ये कहता निकल रहा था, "मज़ा आया, बहुत अच्छी कॉमेडी थी..." पहले जिस तरह हम आदिवासिय्यों के अर्ध-नग्न पोस्टर्स से घर सजाते थे, और उसे कला का नमूना मानते थे,  ठीक वैसे ही आज हमारे गाँव और वहां की समस्याएं हमारे घर सजाने का सामान और कॉमेडी की भरपाई का यंत्र बन गए हैं.
आमिर खान ने माल संस्कृति के दर्शको के लिए पिप्पली लाइव बनायी, और मल्टीप्लेक्स  का दर्शक इसकी गंभीरता को दरकिनार करते हुए इसपे हँसता हुआ मनोरंजन का मसाला समझ देख रहा है. नत्था की बेबसी पर उसे हंसी छूट रही है. बुधिया की गालियों को वो बड़े प्यार से सुन रहा है...
गालियाँ उसे फिल्म से जोड़ रही हैं... मगर सवाल ये है की क्या इतने गंभीर विषय को देखने और समझने की ताकत मल्टीप्लेक्स  के दर्शको की है?
फिल्म की बात करें तो इसमें नया कुछ भी नहीं है. फिल्म की कहानी अनुषा ने मुंशी प्रेमचंद की "कफ़न" से चुरा ली है, जहाँ बीवी के लिए कफ़न खरीदने गए दोनों पात्र दारु में टल्ली हो झूमते हैं और बीवी अन्दर तड़प तड़प के मर जाती है...  फिल्म में अनुषा ने  राज कपूर की "तीसरी कसम" की तरह गीत डाल दिया, उसमे "चलत मुसाफिर था... , इसमें "महंगाई डायन...." है ... 
विशाल भारद्वाज की "ओमकारा" की तरह बेवजह की गालियाँ हैं.. और "मैं आज़ाद हूँ" की तरह मीडिया की लड़ाई और नायक के मरने की खबर का फायदा उठाते नेता और सरकार...
मीडिया के एक "दम्पति पत्रकार" (राधिका और प्रणव रॉय) को फिल्म की शुरुआत में धन्यवाद दिया गया है, जिसने की फिल्म में संसाधन उपलब्ध कराये होंगे, तो साहब वो कैसे पीछे रहते, लगे हांथों उन्होंने एक "ख़ास" न्यूज़ चैनल (स्टार)के एक "ख़ास" रिपोर्टर (दीपक चौरसिया)पर "खुन्नस" निकाल डाली है...
इतने गंभीर विषय को अच्छा ख़ासा मज़ाक बना दिया है आमिर खान ने, अब वो अपनी फिल्म की नुमाइश दुनिया भर में करेंगे "इंडिया सर ये चीज़ धुरंधर..." की रटन लगायेंगे और हो सकता है, इस बार वो "लगान" से ज्यादा पुरस्कार पा जाएँ... 
देश की गन्दगी को शायद आमिर अब पश्चमी देशों में वाहवाही लूटने के लिए ही परदे पर ला रहे हैं...आमिर के लिए उन्ही की इस फिल्म की वो लाइन बिलकुल फिट बैठती है... "जेब दलिद्दर, दिल है समुन्दर..." रुपये कमाने के बाद अब उनका दिल पुरुस्कारों का भूखा है, और भूखा आदमी कुछ भी खाने से नहीं चूकता...
ये हमारी बद्किस्माती है की हम इसे एक फिल्म मान कर बैठ जाते हैं... मगर गौर करने लायक ये है की ये फिल्म नहीं, देश के खिलाफ एक साज़िश है जिसे पूरी शिद्दत  के साथ परदे पर उतारा जा रहा है...

1 टिप्पणी:

vidisha ने कहा…

Hummm... Maine abhi film nahi dekhi hai... but as u mentioned... then it's really sad that ppl r taking such problems only as comedy as my point of u to it is that it's a sarcastic(black) comedy. on which can laugh but can't forget the pain.

And this film certainly shud not b shown Internationally... as our country's problems r not a thing of commercialization & source of profit for anyone.