बदनाम बस्ती...!
क्यों कोसते हो शहर की बदनाम गलियों को, यहां हर मोड़ पर एक "बदनाम बस्ती" है...
दिल की नज़र से....
(चेतावनी- इस ब्लॉग के सर्वाधिकार (कॉपीराइट) ब्लॉग के संचालनकर्ता और लेखक वैभव आनन्द के पास सुरक्षित है।)
शुक्रवार, 6 सितंबर 2013
आज-कल में सबकी बारी है... !!
फ़िज़ूल कोशिश है अब हाथ मलने की,
जिद तो तेरी ही थी साथ चलने की....
पथरीली राहों पे, दर्द भी है, चुभन भी,
तेरी आदत नहीं गिर के फिर संभलने की...
मुक्तसर उम्र होती है, रौशनी के कीड़ों की,
आज-कल में सबकी बारी है जल के मरने की..
गुलाब तोड़ने में हाथ ज़ख़्मी कर लेता हूँ,
अदा सीखा दो, करीने से फूल चुनने की...
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