पत्थरों पे लिखे गए, जो गीत, सब अमर हुए,
काग़ज़ी थी प्रीत अपनी, तो अश्कों में हर्फ़ बह गए।
मौत का था वो तमाशा, महज बन सके तमाशबीन,
परदा गिरा तो होश आया, किसको हम दफना गए।
वो गया, तो ले गया, बहार-ए-चमन साथ में,
हम बेबसी से बस, इलज़ाम-ए-क़िस्मत धर गए।
वो जिसे कल ही तो लाये थे घर, बड़े अरमान से,
आज तस्वीरों में हम बस, उसको समेटे रह गए।
कारवां कुछ यूं लुटा , ख्वाबों सी मखमल राह पर,
अब किस क़दम पे मौत है, हम सोचते ही रह गए।
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