एक ज़िंदा लाश हूं मैं
शून्य सारे भाव मेरे,
खत्म सारे दांव मेरे,
जो दिलासा दे रहा था
वो भी रूठा साथ मेरे
मर चुका विश्वास हूं मैं
लोग कितना भी कहें
हौसला रख तू अभी
मेरे सारे हौसलों पर
भारी पड़े हैं घाव मेरे
नासूर ढोता मांस हूं मैं
रोज़ जंग ख्वाबों के संग
मैं नींद से डरने लगा
सुबह की चहलो-पहल
को सोच के मरने लगा
हर सिम्त रुकती सांस हूं मैं
कांपता हूं याद कर
जो भी बीता साथ मेरे
अब मैं रोऊं किसके कांधे
सब ही रूठे साथ मेरे
दिल में चुभी एक फांस हूं मैं
दफना दिया एक फूल मैंने
जला दिया एक पेड़ भी
अब ना फूलों की हंसी
ना छाया बची है पेड़ की
प्यार की एक प्यास हूं मैं
एक ज़िंदा लाश हूं मैं...
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