क्यों कोसते हो शहर की बदनाम गलियों को, यहां हर मोड़ पर एक "बदनाम बस्ती" है...
दिल की नज़र से....
(चेतावनी- इस ब्लॉग के सर्वाधिकार (कॉपीराइट) ब्लॉग के संचालनकर्ता और लेखक वैभव आनन्द के पास सुरक्षित है।)
शनिवार, 30 जुलाई 2016
इक पल न लगा....
मुद्दतें लगीं तेरी नज़र-ए-इनायत पाने में तुझे इक पल ना लगा मुझे नज़रों से गिराने में सवाल था उम्र भर साथ निभाने का तू तो बिखर गया एक रिश्ता निभाने में तेरी आदत कुछ इस क़दर मुझपे तारी थी... अब तलक उलझा हूं, तलाक लफ्ज़ के मायने में
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