क्यों कोसते हो शहर की बदनाम गलियों को, यहां हर मोड़ पर एक "बदनाम बस्ती" है...
दिल की नज़र से....
(चेतावनी- इस ब्लॉग के सर्वाधिकार (कॉपीराइट) ब्लॉग के संचालनकर्ता और लेखक वैभव आनन्द के पास सुरक्षित है।)
मंगलवार, 14 अप्रैल 2015
माँ ऐसी ही होती है…
गर्मियों में जब शिद्दत की धूप जिस्म को झुलसाती है माँ बहुत याद आती है घर लौट कर जब आता हूँ थका-हारा माँ सर पे हाथ फेरती है और चुपचाप 'आम का पना' बनाती है। माँ ऐसी ही होती है…
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