एक ख़त बिना नाम और पते का ,
डाल के देखा जो हमने,
वो लौट के फिर हाथ मेरे ही लगा,कहता हुआ -
"ये दुनिया है गोल ,
क्या इतना भी है तुझको पता?"...
मैंने कहा,"ऐ दोस्त,हमको ,
ये नहीं मालूम था ,
जब भी किसी को ख़त लिखा उसने
कहा न शुक्रिया, इसलिए इस बार मैंने
बे-पते का ख़त उछाला, पर तुझे
फिर पाके वापस, इतना तो अब समझा किया ,
की भीड़ में रहकर किया जो कोई हमने गुनाह ,
कोई पहचाने या न पहचाने ,
देखता सब है खुदा .....!!
10 टिप्पणियां:
Sach Dekhta Sab hai Khuda ...
Bas Jaan K bhi Anjan Hai admi...
Dafn kr k apne andar apni hi awaz...
kabhi kabhi bas jeene k liye jeeta hai admi...
चलिये अच्छी शुरुआता है, शुभकामनायें,
merajawab.blogspot.com
मैं उन लोगों में शामिल होने की चाहत रखता हूँ जिन्होंने वक़्त सांचे बदले.
Anek shubhkamnayen!
Dua hai aapki ichha pooree ho!
sabka dhanyavaad...
स्वागत है आपका. सार्थक लेखन में जुटे रहें.
खुदा के आश्रय में इस देश का बहुत अधिक पतन हो चुका है, अब रहम कीजिए और अपने बाल पर कुच्छ करने का प्रयास कीजिए.
सुन्दर परिचय
सुन्दर कविता
स्वागत आपका हिंदी ब्लॉग की दुनिया में..
अच्छी लगी आपकी रचना .. इस नए चिट्ठे के साथ हिन्दी चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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